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कविता

किस तरह है पेड़ पर

जयकृष्ण राय तुषार


चोंच में
दाना नहीं है
पंख चिड़िया नोचती है
भागते
खरगोश-सी पीढ़ी
कहाँ कुछ सोचती है।

उगलती है
झाग मुँह से
गाय सूखी मेंड़ पर,
एक पत्ता
हरा जाने
किस तरह है पेड़ पर,
डूबते ही
सूर्य के माँ
दिया-बाती खोजती है।

पेड़ की
शाखों पे
बंजारे अभी भी झूलते हैं,
सास अब भी
बहू पर
इल्जाम सारा थोपती है।

धुले आँगन में
महावर पाँव के
छापे पड़े हैं
दाँत में
उँगली दबाए|
नैन फोटो पर गड़े हैं
बड़ी भाभी
ननद को
खुपिया नजर से टोकती है।


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